जैन धर्म का प्राचीन इतिहास

जैन धर्म का इतिहास बहुत विशाल और बहुत अद्भुत घटनायो से भरा हुआ है। जैन धर्म की महानता को जानकार आप दंग रह जएगे। क्यों की आज हम आपको उसकी पूरी जानकारी देंगे । जिससे आप जान जायेगे की जैन धर्म कितना धार्मिक है।

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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास

काशी के राजा अश्वसेन के राजकुमार पार्श्वकुमार 23 वे जैन तीर्थंकर हुए ,उन्हीं के शिष्य परंपरा में 400 साल बाद सिद्धार्थ गौतम ने दीक्षा ली जो गौतम बुद्ध नाम से प्रसिद्ध हुए।
इधर वैशाली राज्य के सिद्धार्थ राजा के राजकुमार वर्धमान जैन धर्म के 24वे तीर्थंकर हुए जो महावीर स्वामी के नाम से जगप्रसिद्ध हुए। उस वक्त मगध में जैन धर्म और बौद्ध धर्म दोनों का ही प्रचार था।, राजा बिंबिसार वही श्रेणीक है जो हमारे आने वाली चौविसी के प्रथम तीर्थंकर बनने वाले हैं।।

बिंबिसार के पुत्र (कौणिक)अजातशत्रु ने भी तीर्थंकर महावीर के गणधर सुधर्मास्वामी के पास श्रावक नियम ग्रहण कर अपने पापों का प्रायश्चित किया था।
चंद्रगुप्त से पहले नंद वंश के राजाओं में नंदीवर्धन एक महान राजा थे जो जैन धर्म के अनुयाई थे।

जैन धर्म का प्राचीन इतिहास चंद्रगुप्तसे शुरुआत से ही जैन आचार्य भद्रबाहु स्वामी के अनुयाई थे,और उन्होंने स्वयं जैन दीक्षा ली थी। चंद्रगुप्त के पुत्र बिंदुसार ने आजीविक धर्म का पालन किया था जो कि गौशालक द्वारा फैलाया गया धर्म था।

उनके पुत्र सम्राट अशोक के सारनाथ के स्तंभ पर मिले शिलालेख से यह स्पष्ट होता है कि उस समय श्वेतांबर और दिगंबर साधु के बीच का विवाद हुआ था कि तीर्थंकर की प्रतिमा को सफेद वस्त्र पहना जाए या नहीं जिस कारण संघ फिर से एकजुट हो इसी के बारे में विवरण हमें सारनाथ के और बाकी सभी शिलालेखो से पता चलता है।

सारनाथ ६ठे तीर्थंकर पद्मनाथ के चारों कल्याणक की भूमि है, गौतम बुद्ध ने यहां अपना पहला उपदेश दिया हो ऐसा कोई विवरण नहीं है।अशोक के शासन में बौद्ध सभा पाटलिपुत्र में हुई थी जिसमें अभिधम्म पिटक की रचना हुई थी। सारनाथ में ऐसी कोई सभा आयोजित नहीं हुई थी।

सारनाथ स्तंभ के अशौकचक्र(जो तिरंगे में भी है) पर २४ तील्लिया 24 तीर्थंकर को ही समर्पित है, यह 24 घंटे को मानना एकदम गलत है क्योंकि उस वक्त समय की गणना घंटों के हिसाब से नहीं लेकिन प्रहर और मुर्हुत के हिसाब से की जाती थी।

यदि यह चक्र बौद्ध धर्म से संबंधित होता तो इसमें 24 नही, मात्र 8 तिल्लिया ही होती। अशोक के पौत्र संप्रति वही है जिन्होंने सवा लाख जैन मंदिर और सवा करोड़ जैन प्रतिमाएं बनवाई थी। तब जैन धर्म का प्रचार तिब्बत पार कर चाइना तक ना पहुंच जाये इसलिए the great wall of China का निर्माण किया गया था।

।जिनाज्ञा विरुद्ध कुछ लिखा हो तो मिच्छामि दुक्कडम्।।

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